Apr 9, 2023

Magnetic Effect Of Electric Current || विधुत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

चुंबक को कुंडली की ओर ले जाने पर कुंडली के परिपथ में विद्युत धरा उत्पन्न होती है, जिसे गैल्वेनोमीटर की सुई के विक्षेप द्वारा इंगित किया जाता है। कुंडली के सापेक्ष चुंबक की गति एक प्रेरित विभवांतर उत्पन्न करती है, जिसके कारण परिपथ में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। इसे विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते हैं। हाईस्कूल और विग्यान के नालेज के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण है। अतः आज आपसब को Magnetic Effect Of Electric Current |विधुत धारा का चुम्बकीय प्रभाव के बारे मेें विस्तार से बताऊंगा।

Magnetic Effect Of Electric Current


चुंबकीय पदार्थ ( Magnetic Substances):

पदार्थ जिन्हें चुबंक आकर्षित करता है, चुंबकीय पदार्थ कहलाते है।
जैसे- लोहा, कोबाल्ट, निकेल आदि।

चुंबक ( Magnet ): चुंबक वह पदार्थ है जो लौह धातु अथवा लौह धातु की बनी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। चुंबक के सिरे के निकट का वह बिंदु जहाँ चुंबक का आकर्षण बल अधिकतम होता है, ध्रुव कहलाता है। चुंबक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर यह उत्तर और दक्षिण दिशा में रुकता है जो ध्रुव उत्तर दिशा की ओर होता है, उत्तरी ध्रुव तथा जो दक्षिण की ओर होता है दक्षिणी ध्रुव कहलाता है। दोनों ध्रुवों को मिलनेवाली रेखा को चुंबकीय अक्ष कहा जाता है।

Note- सजातीय चुंबक एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और विजातीय चुंबक एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

अचुंबकीय पदार्थ (Non magnetic Substances): वे पदार्थ जिन्हें चुंबक आकर्षित नहीं करता, अचुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं। 
जैसे- काँच, कागज, पीतल इत्यादि।

                      Acid, Bases and Salts
                      Time and Distance 

चुंबकीय क्षेत्र ( Magnetic field ): 

चुंबक द्वारा उत्पन्न वह क्षेत्र जिसमें किसी चुंबकीय पदार्थ को ले जाने पर वह अपनी ओर आकर्षित करने लगता है, चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है। चुंबकीय क्षेत्र को चुंबकीय बल रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है।
Magnetic Effect Of Electric Current

विधुत धारा द्वारा चुंबकीय क्षेत्र उत्त्पन्न होना:

1820 मेें ओर्स्टेड नामक वैज्ञानिक ने अपने प्रयोग से पता लगाया कि जब किसी चालक से विधुत-धारा प्रभावित की जाती है तब चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

चुंबकीय क्षेत्र-रेखाओं के गुण: 

• किसी चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र में क्षेत्र-रेखाएँ एक सतत बंद वक्र होती हैं। 

• ये रेखाएं उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश कराती है और पुन: चुंबक के भीतर होती हुई उत्तरी ध्रुव पर वापस आ जाती हैं।  

• ध्रुवों के समीप क्षेत्र-रेखाएँ घनी होती है परंतु ज्यो-ज्यो उनकी दूरी ध्रुवों से बढ़ती है, उनका घनत्व घटता जाता है।

• क्षेत्र-रेखा के किसी बिंदु पर खीची गई स्पर्श रेखा उस बिंदु पर उस क्षेत्र की दिशा बताती है।

• क्षेत्र-रेखाओं की निकटता बढ़ने से चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ती है। 

• चुंबकीय क्षेत्र-रेखाएँ एक दूसरे को कभी नहीं काटती हैं।

मैक्सवेल का दक्षिण-हस्त नियम ( Maxwell’s right-hand rule ) 

यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए कि अंगूठा धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो तो हाथ की अन्य अँगुलियाँ चुंबकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करेगी।
Magnetic Effect Of Electric Current


धारावाही वृताकार तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र: 

ताँबे का एक मोटा तार लेकर उसे वृताकार रूप में मोड़ कर धारा प्रवाहित करने पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्पन्न होती हैं। वे कुछ निम्न प्रकार दिखाई देती हैं। 8




परिनालिका ( Solenoid ) – जब एक लंबे विधुतरोधित चालक तार को सर्पिल रूप में इस प्रकार लपेटा जाता है कि तार के फेरे एक दूसरें से अलग, परंतु अगल-बगल हों, तो इस प्रकार की व्यवस्था को परिनालिका कहते हैं। 

विधुत-चुंबक ( Electromagnet ):

विधुत-चुंबक ऐसा चुंबक है जिसमें चुंबकत्व उतने ही समय तक विद्यमान रहता है जितने समय तक परिनालिका में विधुत-धारा प्रवाहित होती रहती है। ऐसा विधुत-चुंबक बनाने के लिए एक नरम लोहे के छड को परिनालिका में रखा जाता है।

विधुत-चुंबक की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है-

• विधुत-धारा का परिमाण जितना अधिक होगा चुंबकत्व भी अधिक होगा। 

• परिनालिका में फेरों की संख्या अधिक होने पर चुंबकत्व अधिक होगा। 

• क्रोड के पदार्थ की प्रकृति जैसी होगी चुम्बकत्व भी वैसा होगा। 

धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव- 

• जब एक धारावाही चालक को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उसपर एक बल लगता है।

• 'बल की दिशा', चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा विधुत-धारा की दिशा, दोनों पर निर्भर करती है।

फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम ( Fleming’s left-hand rule ):

यदि हम अपने बाएँ हाथ की तीन अँगुलियों 'मध्यमा, तर्जनी तथा अंगूठे' को परस्पर लंबवत फैलाएँ और यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यमा धारा की दिशा को दर्शाये तब अँगूठा, धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा को व्यक्त करता है।

विधुत मोटर ( Electric motor ):

विधुत मोटर ( Electric motor ): विधुत मोटर में एक शक्तिशाली चुंबक होता है। इसके अवतल ध्रुव खण्डों के बीच ताँबे के तार की कुंडली होती है जिसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर के दोनों छोर पीतल के खंडित वलयों के बने होते हैं जो R1 तथा R2 से जुड़े होते हैं। इनपे कार्बन के दो बुश B1 तथा B2 लगे होते हैं जो आर्मेचर को स्पर्श करते रहते हैं। जब आर्मेचर से धारा प्रवाहित की जाती है तब चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के भुजाओं पर समान मान के किंतु विपरीत दिशाओं में बल लगते हैं इस बल के कारण आर्मेचर घूर्णन करने लगता है।



Note- विधुत मोटर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।

विधुत-चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction):

जब किसी ताँबे के तार की बंद लूप के दोनों सिरों से एक गैल्वेनोमीटर जोड़कर एक छड-चुंबक के किसी एक सिरे को तेजी से उसकी ओर लाए, तो गैल्वेनोमीटर के संकेतक का विक्षेप होता है जिससे पता चलता है कि लूप में धारा का प्रवाह हो रहा है।

Note- लूप में विधुत-धारा उतने ही समय तक प्रवाहित होती है, जब तक कि लूप तथा चुंबक के बीच आपेक्षित गति बनी रहती है।

फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम ( Fleming’s right-hand rule ):

यदि दाहिने हाथ का अँगूठा, तर्जनी और मध्यमा परस्पर समकोणिय तरीके से इस प्रकार रखे गए हो कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को संकेत करती हो और आँगूठा गति की दिशा में हो तो, मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा की ओर संकेत करेगी।


Read more Unit conversion 

विधुत जनित्र ( Electric Generator ): 

विधुत जनित्र में एक शक्तिशाली चुंबक होता है, जिसके बीच एक ताँबे के तार की कुंडली को तेजी से घुमाया जाता है। कुंडली के तार के दोनों छोर पर ताँबे के विभक्त वलय C1 तथा C2 लगे रहते हैं। इन वलयों को कार्बन ब्रुश B1 तथा B2 स्पर्श करते रहते हैं। कुंडली के घूर्णन और विभक्त वलय द्वारा प्रेरित धारा की दिशा में परिवर्तन के कारण प्रतिरोधक R में लगातार एक ही दिशा में विधुत-धारा प्रवाहित होती रहती है। इसी धारा को दिष्ट-धारा (Direct Current) कहते हैं। जो इसे प्रोड्यूस करता हो उस जनित्र को डायानेमों या दिष्ट धारा जनित्र कहते हैं। 

Note- यदि विभक्त वलयों के स्थान पर सर्पी वलयों को लगा दिया जाए तो प्रत्येक अर्ध धूर्णन के बाद धारा की दिशा बदल जाएगी, इस प्रकार की धारा को प्रत्यावर्ती धारा ( Alternative Current ) कहते हैं। इस प्रकार के जनित्र को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र करते हैं।

घरों में उपयोग की जानेवाली बिजली- हमारे घरों में जो विधुत आपूर्ति की जाती है वह 220 V पर प्रत्यावर्ती धारा होती है जिसकी आवृति 50 Hz होती है। इसे मेनलाइन पावर कहा जाता है। जिस तार से यह आपूर्ति होती है, उसे मेन्स वायर या मेन्स कहते हैं। मेन्स के दो तार होते हैं एक से 5 A तक की धारा प्रवाहित होती है तथा दूसरें से 15 A तक की धारा प्रवाहित की जाती है।

घरेलू वायरिंग की संरचना- पावरहाउस से ट्रांसफाॅर्मर की सहायता से विधुत को विधुत पोलों से केबल के द्वारा घरों तक पहुँचाया जाता है। इसमें एक विधुन्मय तार होता है जो लाल रंग के विधुतरोधी पदार्थ से ढँका होता है। दूसरा उदासीन तार होता है जो काले रंग के विद्दुतरोधी पदार्थ से कवर्ड होता है। घरों में एक तीसरा तार भी होता है जिसे भू-तार कहते हैं जो हरें रंग के विधुतरोधी पदार्थ से कवर्ड होता है। 

अतिभारण ( Overloading )- 

विधुत परिपथ में इस्तेमाल होनेवाले तारों का चयन उनमें प्रवाहित होने वाली धारा के परिमाण के महत्तम मान पर निर्भर करता है। यदि उपकरणों की कुल शक्ति इस स्वीकृत सीमा से अधिक हो जाती है तो इसे अतिभारण कहा जाता है।

लघुपथन ( Short-circuiting ): 

कभी-कभी तारों के विद्दुतरोधी परत के खराब या क्षतिग्रस्त हो जाने पर वे आपस में संपर्क (टच) हो जाते हैं। ऐसा होने पर परिपथ का प्रतिरोध लगभग शून्य हो जाता है और परिपथ में बहुत अधिक धारा प्रवाहित होने लगाती है। इससे बहुत तीव्र स्पार्क उत्पन्न होता है तथा परिपथ का ताप बहुत बढ़ जाता है। वायर गल जाते हैं। इसे लघुपथन कहते हैं। 

फ्यूज ( Fuse ): 

फ्यूज ऐसे तार का एक टुकड़ा होता है जिसके पदार्थ की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है तथा गलनांक बहुत कम होता है। विधुत फ्यूज, विधुत परिपथ के बचाव के लिए सबसे आवश्यक सुरक्षा युक्ति है। जब परिपथ में अतिभारण या लघुपथन के कारण या मेन्स में वोल्टता की सीमा बढ़ जाने पर धारा का प्रवाह तेजी से होने लगता है तो धारा से उत्पन्न ऊष्मा के कारण फ्यूज का तार पिघल जाता है और परिपथ भंग हो जाता है। इससे भावी संकट से बचाव हो जाता है।

विधुत के उपयोग से संबंद्ध सावधानियाँ- 

विधुत के उपयोग से संबंद्ध सावधानियाँ- 

• स्विचों प्लगों सँकटों तथा जोड़ा पर सभी संबंधन अच्छी तरह से होने चाहिए

• विधुत-परिपथ में कोई मरम्मत करते समय दस्ताने और जूता पहनना चाहिए |

• स्विच, प्लगों सँकटों तार आदि अच्छे किस्म के होने चाहिए

• परिपथ में आग लगने या अन्य किसी दुर्घटना से बचने के लिए MCV लगवाना चाहिए | 

• परिपथ में लगे फ्यूज उपयुक्त क्षमता तथा पदार्थ के बने होने चाहिए | 


• यदि कोई व्यक्ति विधुन्मय तार के सीधे संपर्क में आ जाता है ओत उसे किसी विधुतरोधी

इस प्रकार हमने विधुत परिपथ, विद्युत क्षेत्र, विद्युत का उपयोग आदि के बारे में बिस्तार समझा। उम्मीद है आपलोग इस चैप्टर को आसान भाषा में समझ पाए होगें। अपने जान पहचान के अन्य विद्यार्थीगण के साथ भी इसे शेयर करें। 

धन्यवाद ।

FAQ

Qua. चुंबक क्या है?

Ans. चुंबक एक नरम लोहे का स्वरूप है, इसमें आकर्षित करने के गुण उपस्थित होते हैं। यह लोहे को आकर्षित करता है।


Qua. विधुत परिपथ भंग क्या होता है?

Ans. जब विधुत परिपथ में अधिक धारा प्रवाहित होने लगती है तो विधुत परिपथ भंग हो जाता है और परिपथ धारा रुक जाती है।

Qua. अतिभारण (Overloading) क्या होता है?

Ans. विधुत परिपथ में इस्तेमाल होनेवाले तारों का चयन उनमें प्रवाहित होने वाली धारा के परिमाण के महत्तम मान पर निर्भर करता है। यदि उपकरणों की कुल शक्ति इस स्वीकृत सीमा से अधिक हो जाती है तो इसे अतिभारण कहा जाता है।


Qua. घरों में उपयोग की जानेवाली बिजली कैसी होती है?

Ans. हमारे घरों में जो विधुत आपूर्ति की जाती है वह 220 V पर प्रत्यावर्ती धारा होती है जिसकी आवृति 50 Hz होती है।


Qua. विधुत मोटर का कार्य क्या होता है?

Ans. विधुत मोटर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।  


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